एक तरफ़ "समाज-सेवा" को बता रहे व्यापार, उधर नगरपालिका ने खोल दी "नई दुकान"-कपिल सिंह चौहान
16/05/2020
नीमच। लॉकडाउन के 56 दिनों में नीमच में विभिन्न समाजसेवी संगठनों ने ज़रूरतमंदों को भोजन उपलब्ध करवाने में अपने संसाधन झोंक दिए. किसी एक का क्या नाम लें, सभी की मंशा यही थी कि नीमच जिले में कोई भूखा ना रहे. अनुमान है कि रोज़ाना सभी संस्थाओं द्वारा मिलाकर आठ से दस हजार भोजन के पैकेट बनाकर वितरित किये जा रहे थे, वहीं आज 56 दिनों बाद नीमच में नि:शुल्क भोजन वितरण के पेकेट की यह संख्या अब 1200 से 1500 पर सिमट गई है. कोरोना अभी गया नहीं, 51 संक्रमित मरीज़ों के चलते 'रोज़ी-रोटी' की दुकानें भी खुली नहीं, तो आखिर पांच-सात हज़ार ज़रूरतमंद जो रोज़ाना इन संस्थाओं द्वारा वितरित भोजन पर 'जिंदा' थे, आखिर वे गये कहां. खैर, इसका हिसाब फिर कभी लगाएंगे. जब इतनी बड़ी संख्या में ज़रूरतमंदों को, पुलिसकर्मियों को, स्वास्थ्यकर्मियों को शहर की समाजसेवी संस्थाओं ने भोजन कराया तो सरकार ने किसको रोटी खिलाई इसका हिसाब भी कभी बाद में लगाएंगे.
लेकिन आज मुद्दा यह है कि निरंतर 56 दिनों से चल रहे लॉकडाउन ने अब निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों को भी निढाल कर दिया है और उनकी जमा-पूंजी खत्म हो गई. मगर अपने स्वाभिमान या संकोच के चलते ऐसे परिवार ना शासन से, ना समाजसेवी संस्थाओं से कुछ मांग सकते हैं, और ना ही उन्हें मिलता है. ऐसे परिवारों के लिये नीमच के कुछ समाजसेवियों ने लागत मूल्य से भी कम, लगभग आधी कीमत में राशन वितरित करने का संकल्प "अन्नपूर्णा सेवा समिती" के माध्यम से लिया. इसके लिये आपदा प्रबंधन की बैठक में मौखिक चर्चा भी की गई. हरी झंडी मिलने पर शुरुआत में लगभग 2000 पैकेट बन सके जिसके लिए राशन का इंतज़ाम भी कर लिया गया. पैकेट बनाने का काम चालू हुआ तो प्रशासन के किसी अधिकारी ने निर्देशित किया कि इस काम के लिये "दीनदयाल अंत्योदय रसोई" के शासकीय भवन का उपयोग नहीं किया जा सकता. अन्नपूर्णा समिती के माध्यम से 350 रुपये का राशन 200 रुपये में उपलब्ध करवाने वाले ज्यादातर वही लोग हैं, जो वर्षों से "दीनदयाल अंत्योदय रसोई" योजना के तहत गरीबों को 5/- रुपये में इसी भवन में भोजन करवा रहे हैं. मगर पहले ही दिन आपत्ति आने पर फिर इस काम को निजी भवन में शिफ्ट कर दिया गया. फिर खाद्य अधिकारी संजीव मिश्रा का एक नया निर्देश आया कि ज़रूरतमंदों को कम कीमत में राशन वितरित करना व्यापार की श्रेणी में आता है और इसके लिये ज़रूरी लायसेंस और जीएसटी आदि ना होने की दशा में आप यह वितरण कार्य नहीं कर सकते. मीडिया ने जानकारी निकाली तो पता चला कि इस अच्छे कार्य के खिलाफ़ किसी पार्षद ने 'चुगली' की है. 'चुगली' से यहां मतलब जलन, इर्ष्या और द्वेष से है, जो अच्छे कार्य को करने पर मिलने वाले सम्भावित 'पुण्य' से उपजती है. इस अन्नपूर्णा समिती के पास सैकड़ों पेंडिंग ऑर्डर पड़े हैं, कंटेनमेंट एरिया के कई रहवासियों के पास पैसा व राशन खत्म होने की सूचना आ रही है, समाजसेवी संस्थाओं ने खाने के पैकेट वितरित करने का कार्य मात्र 10 प्रतिशत कर दिया है, ऐसी स्थिति में भी भाजपा के ही कुछ राजनीतिज्ञों को भाजपा से ही जुड़े उन समाजसेवियों का कार्य रास नहीं आ रहा है जो निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों के संकोच को समझकर उनके स्वाभिमान को बनाये रखते हुए, कोरोना महामारी के दौरान उनकी ज़रूरत को पूरा करने के लिये शहर के सामने एक अच्छी योजना लेकर आए. प्रशासन का मत अपनी जगह ठीक है कि आपत्ति आने पर उन्हे कार्यवाही करनी पड़ती है. मगर ज़रूरतमंदों की मदद करने के उद्देश्य के लिए पूरे डेढ़ माह में कई नियम तोड़े गये, कई छूट दी गई तो कई नई बंदिशें भी लगाई गईं. इसलिये मदद का कैसा लायसेंस और मदद पर कैसा जीएसटी! कहने का मतलब यह है कि जब आप 350/- रुपये का माल 500/- रुपये में बेचने पर पूरा अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं तो 350/- रुपये का माल 200/- रुपये में बेचने पर अंकुश क्यों!! हम तो बेचेंगे कम कीमत में, आप करिये प्रकरण दर्ज...खैर, यह तो मेरी भावनाएं हैं. दिलचस्प बात यह है कि आज ही नीमच नगरपालिका ने शहर के दुकानदारों को 550/-रुपये में सेनेटाईज़र की 2 केन बेचना शुरू किया है जो कि दुकानदारों के लिये खरीदना अनिवार्य है. अब इस सेनेटाईज़र विक्रय के लिये नगरपालिका को कहां से लायसेंस मिला, कहां से परमिशन मिली और कौन सी दुकान का जीएसटी उपयोग में लिया, कौन चेक करे!! क्या नगरपालिका कुछ भी बेच सकती है? क्या दुकान है नगरपालिका?? खैर, प्रशासन इस राजनीति को समझेगा और "अन्नपूर्णा सेवा समिती" के प्रवीण अरोंदेकर, अजय भटनागर, प्रकाश मंडवारिया, हेमंत अजमेरा, प्रदीप ओसवाल, पारस सगरावत और इनके अन्य साथियों को उनके अधूरे संकल्प को पूरा करने की इजाज़त देगा ऐसी उम्मीद है. क्योंकि यही लोग हैं जो पिछले कई वर्षों से पचास रुपये का भोजन गरीबों को सिर्फ 5/- रुपये में 'विक्रय' कर रहे हैं. जब शासन को ज़रूरत थी "अन्त्योदय रसोई" की तब तो इनसे विक्रय लायसेंस नहीं मांगा गया मगर आज क्योंकि राजनीति हो रही है, इसलिए कई सवाल खड़े हो रहे हैं।